जनसंख्या विस्फोट
सुनो मेरे भारतवासियों,
विश्व की ढाई प्रतिशत ज़मीन
हम एक अरब चौदह करोड़ लोगों
को कब तक आशियाना दे सकती है।
सुनों मेरे देश के हैसियतवालों
तुम्हारी हैसियत हो सकती है
पर देश की हैसियत टूट चुकी है
ज़रा करो खुद पर नियंत्रण
करो जनसंख्या में नियंत्रण
सुनों मेरे देश के पढ़े-लिखे अंगूठा छापों,
आज हम दो हमारे दो की स्वतंत्रता नहीं है
अब एक है काफ़ी, दूसरे से माफ़ी
वाला नारा करना है बुलन्द,
करो अपनी आवाज तेज,
सुनों मेरे देश के
मर्दों और जनानियों,
एक संतान भी
तुम्हारी मर्दानगी को
सिद्ध कर देगी,
वही तुम्हारा चन्दा भी कहलायेगा
वही तुम्हारा सूरज
तुम्हारे घर में रोशनी फैलायेगा
नहीं सुन पाओ अगर इस आवाज़ को
तो झांक लेना अपना दिल
कि क्या सच में तुम्हें
एक और संतान
आवश्यक है/ क्या सिर्फ लड़के
या सिर्फ लड़की से
तुम्हारे घर का वंश नहीं चल सकता?
क्या तुम इतने स्वार्थी हो गये हो कि
अपनी वंश परम्परा का गुणगान करने
अपनी मर्दानगी को ज़िन्दा दिखाने के लिये
देश में बिलबिलाते लोगों को
छोड़ देना चाहते जो, जो तुम्हारा खून है,
वंश/सूरज/चन्दा/लक्ष्मी/अन्नपूर्णा है।
वाह! मेरे देश के महान नागरिकों
देश तुम्हारी और तुम्हारी मर्दानगी
का कायल हो रहा है।
बढ़ती भूख और बेरोजगारी से
घायल हो रहा है।
दिखाओ अपनी मर्दानगी बिस्तर में
खूब बढ़ाओ अपने वंश की नाक
और बना दो इस धरती के
सबसे घने देश को
जहाँ बच्चे पैदा करना शान है
चाहे बच्चे भेड़-बकरियों की तरह
हकाले जायें,
बाल मजदूर/गुलाम/अधेड़ों के यौन तृप्ता
बन अपने जीवन को अभिशप्त माने
तुम्हें क्या फर्क पड़ता है
तुम्हारी हैसियत तो बहुत है
अगर बच्चा पढ़ेगा नहीं तो क्या
आफ़त आ जायेगी
भूखा भी नहीं रहेगा क्योंकि
चोरी करना तो सीख ही जायेगा
तुम्हें क्या फर्क पड़ता है
तुम्हारी तो हैसियत है
बच्चे पर बच्चा पैदा करने की
सारा देश तुमने खरीद लिया है
और सड़कों में बिलबिलाते कीड़े-मकौड़े
जिसमें कहीं तुम्हारा अंश भी शामिल होगा
निश्चय ही उस दृश्य का सभी स्वागत करेंगे
क्योंकि आंखों में गिरा हुआ पर्दा
किसी ने अभी तक उठाया नहीं है
और न उठाया जायेगा
बस हम तरसेंगे
दो गज जमीन के लिये
जब आराम से
सोने का समय आयेगा
रवीन्द्र कुमार खरे 0-9290886453
गुरुवार, 10 दिसंबर 2009
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