गुरुवार, 29 मई 2008

आओ एक प्रण करें।
हिन्दी के लिए रण करें।
रण भूमि में चारों ओर
घोर शंखनाद हो,
हिन्दी हिन्दी और हिन्दी में
बस हिन्दी का संवाद हो।
हिन्दी के शत्रुओं की
निद्रा हम हरण करें।
आओ एक प्रण करें।
हिन्दी के लिए रण करें।
विजय संग्राम के इस पथ पर
हिन्दी ध्वज ही लहराये ,
राजतिलक कर दो हिन्दी का
हिन्दी जग में छा जाए,
देश के कोने कोने में
हिन्दी रथ का परिक्रमण करें।
आओ एक प्रण करें।
हिन्दी के लिए रण करें।
जिसने छीना हिन्दी का पद
उसको न हम माफ़ करेंगे,
हिंदुस्तान की गली गली से
यह कचरा हम साफ करेंगे,
बने हुए इन भवनों का
चलो आज अतिक्रमण करें।
आओ एक प्रण करें।
हिन्दी के लिए रण करें।
हिन्दी का रवि जब
आसमान में छायेगा,
जग में फैला अंधियारा
पल में ही मिट जायेगा,
हिन्दी को लग गया है जो
अमावस्या का ग्रहण, हरें।
हिन्दी के लिए रण करें।
आओ एक प्रण करें।
हे! हिन्दी की सेना तुम जागो
शत्रुओं को दूर भगा दो,
मद से चूर हुए शत्रु पर
भाषा का अंकुश लगा दो,
नतमस्तक हो शत्रु
हिन्दी के चरणों में शरण धरें।
आओ एक प्रण करें।
हिन्दी के लिए रण करें।

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