शनिवार, 22 नवंबर 2008

लघु कथाएं


एक
एक लेखक ने लेख लिखा.लेख,अद्भुत लेख.लेखक ने एक मन्दिर,शिक्षा के मन्दिर,जहाँ सरस्वती का वास है,कहते हैं विनम्रता पूजी जाती है मन्दिर में,साहित्य का सम्मान,ताजपोशी की जाती है,उसी मन्दिर के विषय में अपमान जनक बातें लिख कर अपनी पूर्वग्रही कुंठा को व्यक्त किया.लेखक को देश के पाठकों की प्रशंसा प्राप्त हुइ एक मन्दिर की नींव से एक ईंट निकालने के लिये.बुद्धिजीवियों ने भी लेख पढ़ कर घटना को छोटा बता कर पन्ना पलट दिया और अगला लेख पढ़ने लगे.
दो
वह लेखक था.लिखा करता था इसी लिये लेखक था.वस्तुत: वह कवि था.कविताओं का सृजन किया करता था.एक दिन उसकी एक कविता को सर्वश्रेष्ठ कहानी का ईनाम मिला किसी साहित्यिक संस्था से.लेखक को कहानीकार की सी प्रतिष्ठा मिली और एक नये कहानीकार का जन्म हुआ.
तीन
उसने चोरी की.किसी ने नहीं रोका.उसने गाली दी.किसी ने नहीं रोका.उसने मारकाट मचाया.किसी ने नहीं रोका.उसने ज़हर फैलाया.किसी ने नहीं रोका.
उसने विश्वासघात किया.किसी ने नहीं रोका.उसका हौसला बढ़ता गया.हौसला बढ़ता ही गया.सारा समाज उससे डरता गया.डरता ही गया.
अब
वह अपनी वाणी से समाज में आग फैलाता है.आग लगाता है बेखौफ़.अब उसका कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता.लोगों के मन में मलाल है कि जिस दिन उसने चोरी की थी.उसी दिन उसको सजा देना था.
चार
क्या!उसका बलात्कार हुआ?
लोगों ने अचम्भा प्रकट किया और आगे बढ़ गये.
पाँच
चुनाव की तैयारी हो चुकी थी.नेता जी ने भाषण तैयार किया.पिछली तथाकथित उपलब्धियों से भरा भाषण.आम सभा में भोली जनता को सम्बोधित जो करना था.भाषण दिया और अपनी उपलब्धियों का पुराण बाँचा,बाँचते ही गये.जनता सुनती रही.नेता जी प्रसन्नता से फूलते रहे.विश्वास की लहर जागी “कुर्सी तो अपनी ही है इस बार.” जनता भी भोली बनने का आवरण पहने रही.नेता जी चुनाव जीत गये.

बुधवार, 19 नवंबर 2008

क्या हमें सीमा पार के आतंक से खतरा है?

क्या हमें सीमा पार के आतंक से खतरा है ?
सीमा पार आतंक अब इतिहास हो रहा है.जब घर में ही आतंकवादी कसम खा चुके हैं,कि अब आतंक हमें ही फैलाना है,तो शायद अब सीमा पार से आतंकवाद जरा कम होने की सम्भावना है.क्योंकि आतंकियों के मंसूबे तो हम ही पूरा कर रहे हैं.सही भी है कि सभी को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है,(लोग आजकल इसी कृत को अपनी अभिव्यक्ति समझ रहे हैं)चाहे वह निरीह और भोली जनता के खून से स्याही बना कर लिखी भाषा क्यों न हो.हमारी बददिमागी इस कदर बढ़ जायेगी,किसी ने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की होगी।अब हम किसी से डरते नहीं.मासूमों की परवाह करते नहीं.देश मे 100 करोड़ लोग हैं,एक प्रतिशत को भी बहकाया गया तो एक करोड़ कम नहीं होते,फिर कई तो भावनाओं में बह कर स्वत: ही चले आते हैं.यही तो लक्ष्य हैं.हम बहुत भावुक लोग हैं,धर्म,जाति क्षेत्र का मर्म हमें आहत कर देने लगा हैं यही कारण है कि हम ने अपने सिर पर खून को सवार होने की अनुमति दे दी है.वर्ना तो हम अपने धैर्य की मिसाल 1947 से देते आ रहे हैं.अब हमारा धैर्य चुक गया हैं,हम विश्व को यही बताने की कोशिश में रत अपना घर,भाई-बहिन,मित्र,सखा,समाज,जाति,धर्म,क्षेत्र,शहर,देश सभी की बलि देने में आतुर से प्रतीत हो रहे हैं.भूल गये कि हमारी संकल्पना वसुधैव कुटुम्बम की हैं.हम हम अपनी मंजिल से कोसो दूर यह भी भूल गये कि हमें जाना कहाँ है.भटकाव हमारे जीवन में एक तूफान की तरह आ गया और हमें कोई भी गुमराह करने की ताकत रखने लगा है.हमें सम्हलना होगा,एक होना होगा ताकि गुमराह करने वाली शक्ति, चाहे वह धर्म के नाम पर,क्षेत्र के नाम पर,जाति के नाम पर हमें आतंकी बनाने की चेष्टा ,कर हम पर हावी न हो सके.हम अपने ही घर के आतंकवादी न कहलाये जाने लगे.सम्हलना होगा.आगे गहरी खाई सी प्रतीत होती है जिसका गर्त अथाह है कोई भी पैठ नहीं पायेगा.

रविवार, 9 नवंबर 2008

dhanyawaad

मेरे विचारों का स्वागत करने एवं मेरा प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए आप लोगों का मै सादर आभारी हूँ .