क्या हमें सीमा पार के आतंक से खतरा है ?
सीमा पार आतंक अब इतिहास हो रहा है.जब घर में ही आतंकवादी कसम खा चुके हैं,कि अब आतंक हमें ही फैलाना है,तो शायद अब सीमा पार से आतंकवाद जरा कम होने की सम्भावना है.क्योंकि आतंकियों के मंसूबे तो हम ही पूरा कर रहे हैं.सही भी है कि सभी को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है,(लोग आजकल इसी कृत को अपनी अभिव्यक्ति समझ रहे हैं)चाहे वह निरीह और भोली जनता के खून से स्याही बना कर लिखी भाषा क्यों न हो.हमारी बददिमागी इस कदर बढ़ जायेगी,किसी ने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की होगी।अब हम किसी से डरते नहीं.मासूमों की परवाह करते नहीं.देश मे 100 करोड़ लोग हैं,एक प्रतिशत को भी बहकाया गया तो एक करोड़ कम नहीं होते,फिर कई तो भावनाओं में बह कर स्वत: ही चले आते हैं.यही तो लक्ष्य हैं.हम बहुत भावुक लोग हैं,धर्म,जाति क्षेत्र का मर्म हमें आहत कर देने लगा हैं यही कारण है कि हम ने अपने सिर पर खून को सवार होने की अनुमति दे दी है.वर्ना तो हम अपने धैर्य की मिसाल 1947 से देते आ रहे हैं.अब हमारा धैर्य चुक गया हैं,हम विश्व को यही बताने की कोशिश में रत अपना घर,भाई-बहिन,मित्र,सखा,समाज,जाति,धर्म,क्षेत्र,शहर,देश सभी की बलि देने में आतुर से प्रतीत हो रहे हैं.भूल गये कि हमारी संकल्पना वसुधैव कुटुम्बम की हैं.हम हम अपनी मंजिल से कोसो दूर यह भी भूल गये कि हमें जाना कहाँ है.भटकाव हमारे जीवन में एक तूफान की तरह आ गया और हमें कोई भी गुमराह करने की ताकत रखने लगा है.हमें सम्हलना होगा,एक होना होगा ताकि गुमराह करने वाली शक्ति, चाहे वह धर्म के नाम पर,क्षेत्र के नाम पर,जाति के नाम पर हमें आतंकी बनाने की चेष्टा ,कर हम पर हावी न हो सके.हम अपने ही घर के आतंकवादी न कहलाये जाने लगे.सम्हलना होगा.आगे गहरी खाई सी प्रतीत होती है जिसका गर्त अथाह है कोई भी पैठ नहीं पायेगा.
सीमा पार आतंक अब इतिहास हो रहा है.जब घर में ही आतंकवादी कसम खा चुके हैं,कि अब आतंक हमें ही फैलाना है,तो शायद अब सीमा पार से आतंकवाद जरा कम होने की सम्भावना है.क्योंकि आतंकियों के मंसूबे तो हम ही पूरा कर रहे हैं.सही भी है कि सभी को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है,(लोग आजकल इसी कृत को अपनी अभिव्यक्ति समझ रहे हैं)चाहे वह निरीह और भोली जनता के खून से स्याही बना कर लिखी भाषा क्यों न हो.हमारी बददिमागी इस कदर बढ़ जायेगी,किसी ने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की होगी।अब हम किसी से डरते नहीं.मासूमों की परवाह करते नहीं.देश मे 100 करोड़ लोग हैं,एक प्रतिशत को भी बहकाया गया तो एक करोड़ कम नहीं होते,फिर कई तो भावनाओं में बह कर स्वत: ही चले आते हैं.यही तो लक्ष्य हैं.हम बहुत भावुक लोग हैं,धर्म,जाति क्षेत्र का मर्म हमें आहत कर देने लगा हैं यही कारण है कि हम ने अपने सिर पर खून को सवार होने की अनुमति दे दी है.वर्ना तो हम अपने धैर्य की मिसाल 1947 से देते आ रहे हैं.अब हमारा धैर्य चुक गया हैं,हम विश्व को यही बताने की कोशिश में रत अपना घर,भाई-बहिन,मित्र,सखा,समाज,जाति,धर्म,क्षेत्र,शहर,देश सभी की बलि देने में आतुर से प्रतीत हो रहे हैं.भूल गये कि हमारी संकल्पना वसुधैव कुटुम्बम की हैं.हम हम अपनी मंजिल से कोसो दूर यह भी भूल गये कि हमें जाना कहाँ है.भटकाव हमारे जीवन में एक तूफान की तरह आ गया और हमें कोई भी गुमराह करने की ताकत रखने लगा है.हमें सम्हलना होगा,एक होना होगा ताकि गुमराह करने वाली शक्ति, चाहे वह धर्म के नाम पर,क्षेत्र के नाम पर,जाति के नाम पर हमें आतंकी बनाने की चेष्टा ,कर हम पर हावी न हो सके.हम अपने ही घर के आतंकवादी न कहलाये जाने लगे.सम्हलना होगा.आगे गहरी खाई सी प्रतीत होती है जिसका गर्त अथाह है कोई भी पैठ नहीं पायेगा.
1 टिप्पणी:
दुश्मन को दुश्मन कहें, कहें दोस्त को मित्र.
तभी स्पष्ट हो पायेगा, धर्म-युद्ध का चित्र.
धर्म-युद्ध का चित्र, देख लो महाभारत है.
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ भारत का स्वर है.
यह साधक कवि, साफ़ देखता भारत का मन.
धर्म-विरिधी को कहते आये हम दुश्मन.
आये पाकिस्तान से, कहते हैं बेशर्म.
गली-गली में हैं भरे, उन्मादी बेशर्म.
उन्मादी बेशर्म,रोज विस्फ़ोट कर रहे.
फ़िर भी वे अच्छे हैं, क्यों कि वोट कर रहे.
कब साधक बुद्धि जागेगी हिन्दुस्थान की.
मुसलमान आतंक बात क्या पाकिस्तान की.
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