सोमवार, 31 अगस्त 2009

सफ़ाई अभियान

व्यंग्य
सफ़ाई अभियान

विश्वविद्यालय के छात्रों को लगा कि परिसर बहुत गन्दा है और विश्वविद्यालय प्रशासन सफाई में ध्यान नहीं दे रहा है। छात्रों ने सफाई करने की जिम्मेदारी अपने कन्धों में उठाने का प्रण किया, जिससे अपने विश्वविद्यालय के परिसर को स्वच्छ और ताज़गी भरा वातावरण दिया जा सके। छात्र इकट्ठे हुए और आनन-फानन में उन्होंने सफ़ाई अभियान की रूपरेखा बना डाली। संख्या बढ़ाने के लिये छात्रों को विशेष रूप से बुलाया गया। जल्दीबाजी में छात्रों ने नहाना भी उचित नहीं समझा। एक लड़का बाल कटवाने जा रहा था, आमंत्रण पा कर वह भी सभा में उपस्थित हो गया। बाल तो बाद में भी कटवाये जा सकते थे। हालँकि सिर पर अतिरिक्त बोझ हो चुके थे उसके बाल। पर महत्त्वपूर्ण था परिसर की सफ़ाई का अभियान।
ज़ल्दी-ज़ल्दी में गत्ते की तख्तियाँ बनाई गयीं, जिस पर बहुत ही सफ़ाई से नारे लिखे गये थे। नारों की वर्तनी को बहुत महत्त्व नहीं दिया था लिखने वाले ने। एक नगाड़े वाले की भी व्यवस्था की गयी लोगों को आकर्षित करने के लिये। नगाड़े की आवाज़ जैसे-जैसे ध्वनि-तरंगों के साथ चहुँ ओर प्रसारित हुई, वैसे-वैसे भीड़ अपनी चरम पर पहुँच गयी।
इस सफ़ाई अभियान से सभी को उम्मीदें थीं कि विश्वविद्यालय परिसर एकदम ‘दूध सी सफ़ेदी निरमा से आये’ वाली कहावत को चरितार्थ करेगा। इस आन्दोलन की एक उपलब्धि और थी, एक सफेद लट्ठे का कपड़ा दो लड़कों ने पकड़ रखा था जिसमें वहाँ उपस्थित सभी लोगों से हस्ताक्षर लिए जा रहे थे और उन्हें शपथ दिलायी जा रही थी कि हम परिसर के प्रांगण को साफ़ करके ही दम लेंगे और साफ़-सफ़ाई के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे। आन्दोलन की नेता एक लड़की थी जो नारे पे नारे लगाए जा रही थी। वह नारा लगाती - ‘विश्वविद्यालय परिसर को बचाओ’ पीछे से अनुयायी चिल्लाते - ‘साफ़-सफ़ाई में लग जाओ।‘ देखते ही देखते लट्ठे का कपड़ा आड़े-तिरछे हस्ताक्षरों से पूरा का पूरा भर गया। उत्तेजित आन्दोलनकारी परिसर की सफ़ाई में जुट गये।
विश्वविद्यालय का क्षेत्र विशाल था अत: निर्णय लिया गया कि आज मात्र मुख्य-मुख्य स्थानों की सफ़ाई की जायेगी। अत: जहाँ से आन्दोलन की शुरुआत की गई है उस जगह को साफ़ करते हैं। एक लड़का भागकर बड़े-बड़े दो-तीन गत्ते के खाली बक्से ले आया। देखते ही देखते कचरे पर आन्दोलनकारियों की भीड़ टूट पड़ी। सभी के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी। बक्से कचरे से लबालब भर गये। बारी थी अब फ़ोटो खिंचवाने की। आन्दोलन की नेता ने सबसे पहले फ़ोटो खिंचवायी। फिर तो सबके सब्र का बाँध टूट चुका था। किसी ने बियर की बोतल तो किसी ने पन्नियों के ढेर को हाथ में लेकर फ़ोटो खिंचवायी। पूरा वातावरण गहमा-गहमी से भरा हुआ था। लोगों ने कहीं भी न थूकने, मूतने का प्रण लिया। सिगरेट के टुकड़ों को भी सफ़ाई अभियान का मुद्दा बनाया गया। वैसे सिगरेट बेचना परिसर में वर्जित है, पीना नहीं। तो यह जरूरी हो गया कि सिगरेट के विषय में मुद्दा तो बनाया जाये, किंतु इस विषय को अधिक तूल देकर हल्ला मचाना किसी ने भी लाभप्रद नहीं समझा, क्योंकि आन्दोलनकारियों में से कई लोगों का रक्त सिगरेट के धुएँ के साथ घुला-मिला हुआ था। ‘बियर की बोतलों के साथ भी मित्रवत व्यवहार किया जाए’, एक सुझाव आया। अभियान की नेता ने देखा कि कचरे का डिब्बा बियर और दारू की बोतलों और सिगरेट के टुकड़ों से भर रहा है तो वह तनावग्रस्त हो गयी। जेब से एक सिगरेट निकाली और अपने विश्वासपात्र कार्यकर्ता को बुलाकर कहा कि - “आज तो थकान अधिक हो रही है। रात में रम पीना ज़रूरी है नहीं तो कल सफ़ाई अभियान धीमा हो जायेगा।” कार्यकर्ता समझ गया। तेजी से अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो परिसर से बाहर चला गया। अन्धेरा भी गहरा रहा था। नेता ने घोषणा की कि अगली सुबह कक्षाओं का बहिष्कार किया जायेगा और सफ़ाई अभियान को तेजी से बढ़ाने के लिए और नये कार्यकर्ताओं को इस आन्दोलन में सम्मिलित किया जायेगा। प्रेमियों के मिलने की जगह और छात्रावासों के पीछे की जगह को छोड़ कर सम्पूर्ण परिसर की सफ़ाई की जायेगी। यह कह कर उसने सिगरेट का टुकड़ा ज़मीन पर मसल कर सभी से अलविदा कहकर आँखों से ओझल हो गयी।

रवीन्द्र कुमार खरे 9290886453

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