एक
एक लेखक ने लेख लिखा.लेख,अद्भुत लेख.लेखक ने एक मन्दिर,शिक्षा के मन्दिर,जहाँ सरस्वती का वास है,कहते हैं विनम्रता पूजी जाती है मन्दिर में,साहित्य का सम्मान,ताजपोशी की जाती है,उसी मन्दिर के विषय में अपमान जनक बातें लिख कर अपनी पूर्वग्रही कुंठा को व्यक्त किया.लेखक को देश के पाठकों की प्रशंसा प्राप्त हुइ एक मन्दिर की नींव से एक ईंट निकालने के लिये.बुद्धिजीवियों ने भी लेख पढ़ कर घटना को छोटा बता कर पन्ना पलट दिया और अगला लेख पढ़ने लगे.
दो
वह लेखक था.लिखा करता था इसी लिये लेखक था.वस्तुत: वह कवि था.कविताओं का सृजन किया करता था.एक दिन उसकी एक कविता को सर्वश्रेष्ठ कहानी का ईनाम मिला किसी साहित्यिक संस्था से.लेखक को कहानीकार की सी प्रतिष्ठा मिली और एक नये कहानीकार का जन्म हुआ.
तीन
उसने चोरी की.किसी ने नहीं रोका.उसने गाली दी.किसी ने नहीं रोका.उसने मारकाट मचाया.किसी ने नहीं रोका.उसने ज़हर फैलाया.किसी ने नहीं रोका.
उसने विश्वासघात किया.किसी ने नहीं रोका.उसका हौसला बढ़ता गया.हौसला बढ़ता ही गया.सारा समाज उससे डरता गया.डरता ही गया.
अब
वह अपनी वाणी से समाज में आग फैलाता है.आग लगाता है बेखौफ़.अब उसका कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता.लोगों के मन में मलाल है कि जिस दिन उसने चोरी की थी.उसी दिन उसको सजा देना था.
चार
क्या!उसका बलात्कार हुआ?
लोगों ने अचम्भा प्रकट किया और आगे बढ़ गये.
पाँच
चुनाव की तैयारी हो चुकी थी.नेता जी ने भाषण तैयार किया.पिछली तथाकथित उपलब्धियों से भरा भाषण.आम सभा में भोली जनता को सम्बोधित जो करना था.भाषण दिया और अपनी उपलब्धियों का पुराण बाँचा,बाँचते ही गये.जनता सुनती रही.नेता जी प्रसन्नता से फूलते रहे.विश्वास की लहर जागी “कुर्सी तो अपनी ही है इस बार.” जनता भी भोली बनने का आवरण पहने रही.नेता जी चुनाव जीत गये.